बिलासपुर नगर मंे आप्रवासी जनसंख्या एवं समस्याएँ
डाॅ. शुचिता बघेल
भूतपूर्व शोध छात्रा (भूगोल), पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
प्रस्तुत शोध पत्र का प्रमुख उद्देश्य बिलासपुर नगर में आप्रवासियों के प्रवास प्रतिरूप एवं आप्रवासियों की समस्याओं को नगर में उपलब्ध सुविधाआंे के आधार पर विश्लेषण करना है। बिलासपुर नगर से 2192 परिवारों से अनुसूची के माध्यम से प्रवास संबंधी जानकारी प्राप्त की गई है। प्रवासियों का अध्ययन जन्म स्थान के आधार पर किया गया है। आप्रवासियों की समसयाओं को दो वर्गों आप्रवासियों की समस्याएँ एवं प्रवास क्षेत्र बिलासपुर नगर के संदर्भ में विश्लेषित किया गया है। आप्रवासियों की समस्याओं के अंतर्गत सामाजिक आर्थिक एवं आवासीय समस्याओं का उल्लेख किया गया है। जबकि नगर की समस्याओं के अंतर्गत जनसंख्या के आकार एवं जनसंख्या घनत्व में वृद्धि, लिंगानुपात मंे परिवर्तन, नगर में गंदी बस्तियों का प्रार्दुभाव, सामाजिक अपराधों में वृद्धि, नगर में दुर्घटनाओं में वृद्धि का अध्ययन किया गया है। नगर की समस्याओं का समाधान एवं निधान संबंधी सुझाव प्रस्तुत किये गये है।
बिलासपुर, आप्रवासी, जनसंख्या, समस्याएँ
प्रस्तावना
प्रवास की विचारधारा जनसंख्या परिवर्तन मंे महत्वपूर्ण घटक है। मानव विकास की प्रत्येक अवस्था में गतिशील जनसंख्या एक आधारभूत विशेषता रही है, तथापि आर्थिक एवं तकनीकी विकास ने निःसंदेह स्थानांतरण का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे परिवहन एवं संचार के साधनांे की कार्यकुशलता में भी विस्तार हुआ है। प्रवास से केवल व्यक्ति के आवास स्थान में स्थाई अथवा अर्धस्थाई परिवर्तन नहीं होता, उसके सामाजिक संबंधों में भी पूर्ण परिवर्तन और पुर्नर्योजन होता है।
प्रवास का संबंध क्षेत्रीय वितरण, प्रक्रिया एवं अतः क्रियाओं को समझने के साथ जुड़ा है और यही कारण है कि प्रवास भूगोल के अध्ययन विषयों में उच्च स्थान रखता है। एक भूगोलवेत्ता के लिये प्रवास केवल मानव संसाधन का पूर्नवितरण ही नहीं है, बल्कि एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तीन प्रकार के प्रभाव होते हैं प्रथम-वह क्षेत्र जहाँ से प्रवासी बाहर जाते हैं, द्वितीय-वह क्षेत्र जहाँ प्रवासियों का आगमन होता है। तृतीय-स्वयं प्रवासित व्यक्ति, सभी बदल जाते हैं। प्रत्येक प्रवास का औद्योगीकरण प्रविधिक विकास तथा अन्य परिवर्तनों से जो समाज को आधुनिकता प्रदान करते हैं, कार्यात्मक संबंध होता है।
उद्देश्य
छत्तीसगढ़ के उल्लेखनीय प्राचीन नगरों में बिलासपुर परिवहन के दृष्टिकोण से प्रमुख नगर है। यहाँ छत्तीसगढ़ का प्रमुख रेलवे परिक्षेत्र स्थापित है। इसके साथ ही यह प्रमुख प्रशासनिक, औद्योगिक, व्यापारिक एवं शैक्षणिक नगर के रूप में विकसित हुआ है। 2001 में बिलासपुर में उच्च न्यायालय की स्थापना से यहां की जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ नगर की जनसांख्यिकी संरचना में न केवल मात्रात्मक अपितु गुणात्मक परिवर्तन भी संभव हुआ है। इससे न केवल आप्रवासियों की अपितु नगरवासियों की भी आर्थिक-सामाजिक दशायें परिवर्तित हुई है।
अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य बिलासपुर नगर के प्रमुख आप्रवास क्षेत्रों का विश्लेषण करना एवं आप्रवासियों और आप्रवासी क्षेत्र बिलासपुर नगर से सबंधित समस्याओं का विश्लेषण करना एवं उनके निराकरण हेतु उपाय प्रस्तुत करना।
विधितंत्र
प्रस्तुत अध्ययन मुख्यतः अधिक आंकडों पर आधारित है। आप्रवास संबंधित आंकड़ों के संकलन हेतु बिलासपुर नगर के 55 वार्ड़ों में से उद्देश्य पूर्ण यादृच्छिक विधि द्वारा 25 वार्डों का चयन किया गया है। वार्ड़ों के 10ः परिवारों का स्तरीकृत चयन का अध्ययन किया गया है। प्रतिदर्श आप्रवासी परिवारों के सामाजिक, आर्थिक एवं प्रवास संबंधी जानकारी अध्ययन साक्षात्कार एवं अनुसूची द्वारा प्राप्त की गयी है। इस प्रकार नगर के चयनित वार्डों से 2190 अनुसूची भरी गई है। चयनित वार्डो के चयनित परिवारों से आप्रवासी व्यक्तियों की गणना मूल निवास स्थान पर आधारित है।
शोध परिकल्पना
(1) आप्रवासियों में क्रियाशील जनसंख्या की अधिकता होती है, जिसमें युवा वर्ग (15-49 आयु वर्ग) की प्रधानता होता है।
(2) प्रवास लिंगपरक होता है जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक होती है।
(3) नगरों में अत्याधिक आप्रवास से निम्न स्तर की आवासीय दशाएँ विकसित होती है।
(4) कृषि एवं नगरीय क्षेत्रों में कृषीय आर्कषण की अपेक्षा नगरीय आर्कषण प्रवास के अधिक गतिशील कारक होते है।
अध्ययन क्षेत्र
छत्तीसगढ़ के प्रमुख नगरों में अरपा नदी के तट पर स्थित बिलासपुर एक समृद्ध नगर है। इस नगर की प्रगति श्रेय दक्षिण-मध्य-पूर्व रेलवे परिक्षेत्र एवं दक्षिणी पूर्वी कोल लिमिटेड के मुख्यालय को दिया जाता है। इसके अलावा यह नगर छत्तीसगढ़ क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं प्रशासनिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ है। नगर का विस्तार 22ह्05ह् उत्तरी अंक्षाश एवं 82ह्25श् पूर्वी देशांतर के मध्य है। नगर का कुल क्षेत्रफल 45.43 वर्ग किमी. एवं समुद्र सतह से औसत ऊंचाई 285 मीटर है। यहाँ के भूगर्भ में कुडप्पा-बीजापुर क्रम की चूना पत्थर की संस्तरें पाई जाती है।
आप्रवास प्रतिरूप
प्रवास का अभिप्राय उस निवास परिवर्तन से है जिसमें व्यक्ति विशेष के सामुदायिक लगाव में पूर्णतः परिवर्तन और पुनर्समायोजन होता है (बोग 1959) क्योंकि प्रवास मृत्यु एवं जन्म की तरह पूर्णतः जैविक घटना नहीं है, यह भौतिक और सामाजिक लेनदेन की प्रक्रिया है (जैलिन्स्की 1966)।
बिलासपुर नगर में चयनित परिवारों (2192) की कुल जनसंख्या 11005 है। जिसमें जन्म स्थान के आधार पर 5619 व्यक्ति (51.06ः) आप्रवासी हैं। नगर में आप्रवासी व्यक्तियों मंे पुरूष आप्रवासी का प्रतिशत (47.43ः) महिला आप्रवासी (52.57ः) से अपेक्षाकृत कम है (परिकल्पना-2, सत्यापित)। पुरूषों की तुलना में महिलाओं में अधिक आप्रवास का प्रमुख कारण वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन एवं पारिवारिक गतिशीलता है। नगर में कुल आप्रवास का 50.76ः व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र में तथा 49.24ःव्यक्ति नगरीय क्षेत्र से प्रवासित हुए। ग्रामीण क्षेत्रांे से प्रवासित व्यक्ति में महिलाओं का प्रतिशत (54.30ः) एवं नगरीय क्षेत्रों से प्रवासित व्यक्तियों में पुरूषों का प्रतिशत (53.17ः) अपेक्षाकृत अधिक रहा। नगरीय क्षेत्रों में रोजगार की उपलब्धता एवं स्थनांतरण आप्रवासी पुरूषों के प्रवास का प्रमुख कारण रहा है।
आप्रवास संबंधी समस्याएँ:
सामान्यतः, प्रत्येक प्रवासी अपने नए वातावरण में अपने मूल वातावरण का कुछ न कुछ पुनः स्थापना करना चाहता है (गार्नियर, 1966) अस्तु, प्रवास प्रक्रिया स्वरूप का प्रवासी गन्तव्य क्षेत्र, प्रवास जनन क्षेत्र, तथा स्वयं प्रवासी तीनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जिससे जहाँ एक ओर क्षेत्र की सभ्यता एवं संस्कृति समृद्ध होती है, वहीं दूसरी ओर जनसांख्यिकीय संरचना में भी मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन होता है। यद्यपि आप्रवासियों के कारण प्रवास क्षेत्र के जनांकिकी लक्षणों यथा-घनत्व, वृद्धि आयु, लिंग, शिक्षा इत्यादि में परिवर्तन के कारण कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का विकास होता है, अपितु आप्रवासियों को भी नए वातावरण के साथ सांमजस्य करने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए, बिलासपुर नगर में आप्रवास से उत्पन्न समस्याओं क विश्लेषण दो वर्गों में रखकर किया गया हैः- प्रथम-आप्रवासी जनसंख्या की समस्याएँ एवं द्वितीय-आप्रवासी क्षेत्र बिलासपुर नगर की समस्याएँ।
अ. आप्रवासी जनसंख्या की समस्याएँ
नगर में आप्रवासी एवं उनके परिवार की समस्याओं के विश्लेषण के लिए आप्रवासियों की सामाजिक, आर्थिक एवं आवासीय दशाओं का विश्लेषण किया गया एवं वर्तमान में आप्रवासियों को प्राप्त सुविधाओं को दुष्टिगत रखते हुये उनकी समस्याओं का अध्ययन किया गया हैं।
1. सामाजिक समस्याएँ
आप्रवासियोें में जाति, धर्म एवं भाषा में क्षेत्रीय विभिन्नता होती है। अतः ये अपनी भाषा एवं धर्म को सुरक्षित एवं विकसित रखने के प्रयास में विभिन्न भाषा एवं धर्मों के लोगों से सांमजस्य स्थापित नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप आप्रवासियों को अपने मूल वातावरण के साथ प्रवासी क्षेत्र में नए वातारण से सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। जिसमें आप्रवासियों को न केवल आप्रवासी क्षेत्र में सर्व प्रथम अपने पास-पड़ोस के नए वातावरण में प्रमुख में उन्मुख होना पड़ता है, अपितु नवीन सामंजस्य के साथ सामाजिक सुरक्षा जातिभेद, पुलिस का व्यवहार अन्र्तवैयक्तिक संबंधों मंे वृद्धि विशिष्ट समुदाय में व्यवहार एवं विश्वास आदि सामाजिक कारणों के दुष्परिणाम से उत्पन्न समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
बिलासपुर नगर में भारत के विभिन्न राज्यों से आप्रवास अधिक (56.52ः) हुआ है, जिसमें आप्रवासियों में जाति, भाषा एवं धर्म की क्षेत्रीय विभिन्नता अपेक्षाकृत अधिक है। परिणामस्वरूप 63.66ः आप्रवासी अपने ही समुदाय में रहना चाहते है, जिससे इन्हें पास-पड़ोस में नवीन सांमजस्य स्थापित करने में समस्या उत्पन्न हुई। नगर के न्यायधानी बनने के पश्चात् यद्यपि पुलिस प्रशासन द्वारा सामाजिक सुरक्षा में वृद्धि हुई है, तथापि 0.49 आप्रवासी सामाजिक सुरक्षा एवं पुलिस व्यवहार से पीड़ित रहे। नगर के 39.47ः आप्रवासी अपने वर्तमान सामाजिक परिवेश में जाति भेद की भावना से पीड़ित है।
नगर में आप्रवासियों को स्थानीय परिवार के साथ अन्तरव्यैक्तिक संबंध बनाने होते है, किन्तु नए परिवेश में अपने मूल परिवेश से सामंजस्य न करने से अन्तरवैयाक्तिक संबंध विकसित करने में कठिनाईयाँ उत्पन्न होती है, जिससे पास-पड़ोस के वातावरण में तनाव की स्थिति निर्मित हा जाती है। इस दृष्टि से नगर में 54.99ः आप्रवासियों को अन्तरव्यैक्तिक संबंध करने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, जबकि 41.51ः आप्रवासियों को विशिष्ट समुदाय में व्यवहार, विश्वास एवं मान्यताओं में सांमजस्य स्थापित करने में अधिक कठिनाई हुई जिसमें आप्रवासियों की भाषा एवं धर्म के साथ क्षेत्रीय विविधता अधिक बाधक सिद्ध हुई।
2. शिक्षा संबंधी समस्याएँ
बिलासपुर नगर में उच्च-माध्यमिक स्तर की सुविधा प्रायः सभी वार्डों में उपलब्ध है। इसके अलावा उच्च-शैक्षणिक स्तर यथा स्नातक/स्नातकोत्तर अभियांत्रिकी महाविद्यालय, चिकित्सा महाविद्यालय, कृषि महाविद्यालय, जैसे रोजगार सुविधाएँ भी है तथापि रोजगरपरक सुविधाएँ महंगी होने के कारण निम्न-आर्थिक स्तर के परिवार इसका लाभ अपने बच्चों को देने में असमर्थ रहते है। नगर में 29.31ः परिवार अपने बच्चों को उच्च शैक्षणिक स्तर की रोजगारपरक सुविधा देने से वंचित रहें।
3. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ
नगर में 2.90ः आप्रवासी श्वसन संबंधी, 5.09ः आप्रवासी पेट संबंधी, 6.19ः आंख संबंधी एवं 10.03ः आप्रवासी अन्य पारिवारिक स्थास्थ्य संबंधी बीमारियों से पीड़ित है। निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के आप्रवासियों को ये सुविधाएँ प्राप्त करने में कठिनाईयों का सामना करना पढ़ता है, जिससे आप्रवासियों को न केवल आर्थिक क्षति होती है, अपितु समय पर उचित उपचार न मिलने से पारिवारिक क्षति का भी सामना करना पड़ता है।
4. आप्रवासियों की आर्थिक समस्याएँ
वर्तमान समय में क्रियाशील आप्रवासियों को न केवल आपस में अपितु स्थानीय लोगों के साथ भी आर्थिक प्रतिस्पर्धा में भाग लेना पड़ता है। आप्रवासियों की आर्थिक समस्याओं के अंतर्गत क्रियाशील आप्रवासियों के कार्य से संबंधित समस्याओं का विश्लेषण उनके कार्य स्थल में प्राप्त सुविधाओं के संदर्भ में किया गया है।
नगर में 30.72ः आप्रवासियों को अतिरिक्त भुगता की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जबकि 18.16ः आप्रवासियों को नियमित वेतन का भुगतान नहीं होता है इस प्रकार क्रियाशील आप्रवासियों की अधिकांश समस्याएँ अपने कार्यस्थल से संबंधित है, जो क्षेत्रीय विभेद, लिंग भेद, जाति भेद एवं वर्ग भेद का परिणाम है।
5. आवासीय समस्याएँ
नगर में आप्रवासियों की मुख्य समस्या सुविधायुक्त एवं सस्ते मकान की होती है। नगर में 45.27ः परिवार किराए के मकान में रहते हैं, जिसमें से 19.66ः परिवार शासकीय एवं औद्योगिक संस्थान द्वारा प्राप्त मकान में निवासरत है, किन्तु 20.31ः आप्रवासियांे को यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। जिससे उन्हें अधिक किराए की राशि एवं असुविधाजनक मकान में निवास करना पड़ता है।
नगर में यद्यपि पेयजल एवं विद्युत की पूर्ण सुविधा उपलब्ध है, तथापि 5.64ः आप्रवासी परिवार को सार्वजनिक, पेयजल के साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है, जबकि 13.21ः आप्रवासी परिवार को एक बत्ती कनेक्शन की ही सुविधा है। इसके अलावा 16.41ः आप्रवासी परिवारों को शौचालय की असुविधा है, जिसके कारण उन्हें सुलभ शौचालय, कच्चा शौचालय, अथवा मैदान में जाना पड़ता है, जो उनके निम्न आवासीय दशा का द्योतक है। इसी प्रकार 21.16ः परिवारांे को गंदे पानी के निकासी की समस्या है।
आप्रवासी परिवारों के निवास स्थल में 1.15ः परिवारों के पास-पड़ोस का वातावरण दूषित है, नगर में क्रियाशील आप्रवासी में से 15.64ः आप्रवासी अपने निवास से 4 किमी. से अधिक दूरी पर क्रियाशील है, जबकि 7.86ः आप्रवास परिवारों के मकान से बाजार स्थल की दूरी 4 कि.मी. से भी अधिक है।
ब. आप्रवासी क्षेत्र बिलासपुर नगर की समस्याएँ
बिलासपुर नगर के आर्थिक विकास में आप्रवासियों की आर्थिक सक्रियता विशेष महत्वपूर्ण रही है। तथापि नगर के जनसंख्या के मात्रात्मक परिवर्तन से न केवल नगरीय जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि हुई, अपितु जनसंख्या के आकार में वृद्धि हुई है। जिससे नगर में गंदी बस्तियों के विकास के साथ-साथ सामाजिक अपराध एवं यातायात की समस्याओं में वृद्धि हुई।
1. नगरीय जनसंख्या एवं घनत्व में वृद्धि
नगर में जनसंख्या आप्रवास के परिणामस्वरूप नगर की जनसंख्या एवं घनत्व में तीव्र वृद्धि हुई। वर्ष 1911 में नगर की कुल जनसंख्या 19,850 थी, जो वर्ष 2001 में बढ़कर 2,74,917 हो गई। जनसंख्या के आकार मंे सबसे अधिक वृद्धि 1961 में हुई। इस दशक के मध्य में (वर्ष 1956) मध्यप्रदेश राज्य का पुर्नगठन होने के बड़ी मात्रा में प्रवास हुआ, जिससे नगर की जनसंख्या में 121.76ः की वृद्धि हुई। वर्ष 1991-2001 के दशक में नगर की जनसंख्या में 52.87ः की वृद्धि हुई तथा इस दशक के अंत में छत्तीसगढ़ राज्य का पूर्नगठन (1 नवम्बर वर्ष 2000) होने के से राज्य का उच्च न्यायलय बिलासपुर में स्थापित हुआ परिणामतः इस अवधि में अधिक मात्रा में आप्रवास हुआ। पिछले चार दशकों में (1961-2001) नगर की जनसंख्या में 259.86ः की वृद्धि हुई। जनसंख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप नगर का जनसंख्या घनत्व वर्ष 1961 में 2680 व्यक्ति/वर्ग किमी. से बढ़कर वर्ष 2001 में 6051 व्यक्ति/वर्ग किमी. हो गया। नगर के इस बढते हुए जनसंख्या का सबसे अधिक दुष्पारिणाम जहाँ की आवासीय ईकाईयों पर पड़ा। जिसकी कमी सेनगर में गंदी बस्तियों का प्रादुर्भाव हुआ। जिसने नगर के पर्यावरण एवं सौन्दर्यीकरण को भी प्रभावित किया है।
2. गंदी बस्तियों का विकास
मलिन बस्तियां सामान्यतः नगर मंे स्थित वे आवासीय क्षेत्र होती हैं, जहाँ त्रुटिपूर्ण विन्यास वाले आवासित एवं झुग्गी-झोपड़ीनुमा मकान मिलते हैं (सिंह, 2003)। मूलभूत आवश्यकताएं एवं सुविधा-रहित समाज के अनौपचारिक मजदूरी वर्ग की बसाहट गंदी बस्ती के नाम से पहचानी जाती है। नगर में आप्रवासियों के निवास से नगरीय घनत्व में तीव्र वृद्धि हुई। जिससे आप्रवासियों के समक्ष सस्ते एवं सुविधायुक्त आवासों की समस्या उत्पन्न हुई। परिणामतः आप्रवासियों को निम्न आवासीय दशा में निवास करना पड़ा जिससे नगर में गंदी बस्तियों का विकास हुआ। वर्तमान में नगर में 08 अधिसूचित गंदी बस्ती एवं 37 नगर निगम द्वारा पंजीकृत गंदी बस्तियां है, इस प्रकार नगर में गंदी बस्तियों की संख्या 45 है। इनमें 10863 झुग्गी-झोपड़ी का निर्माण कर 54315 व्यक्ति निवासित है। इस प्रकार गंदी बस्ती में निवास कर रही जनसंख्या बिलासपुर नगर की कुल जनसंख्या का लगभग 17ः है।
3. यातायात की समस्या:
आप्रवासियों के आगमन से नगर में जनसंख्या के दबाव में तीव्र वृद्धि हुई। नगर में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ पंजीकृत वाहनों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है, जिसके कारण नगर के यातायात पर दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों के साथ-साथ मालवाहन वाहनों का भी दबाव बढ़ा है। वर्ष 1997-98 में पंजीकृत वाहनों में 83.20ः स्कूटर/मोटर सायकल/ मोपेड थे, जबकि टेªक्टर/जीप/टेªक्टर 7.44ः पंजीकृत मालवाहक 5.41ः एवं 2.52ः कार था। वर्ष 1990-2000 में पंजीकृत बाहनों में टेªक्टर/जीप/टेªलर में जहाँ 18.29ः की वृद्धि हुई, वहीं स्कूटर/मोटर/सायकल/मोपेड में 12.92ः टैक्सी/तीन पहिया वाहन में 12.86ः बसवाहन में 8.54ः एवं मालवाहन में 5.53ः की वृद्धि हुई। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात् नगर में जनसंख्या आप्रवास से नगर की आकारिकी एवं जन घनत्व में वृद्धि होने से वाहनों के प्रयोग में भी वृद्धि हुई। वर्ष 2001-2008 के मध्य पंजीकृत वाहनों से सबसे अधिक वृद्धि मालवाहन (370.62ः) में हुई। इसके अलावा बस वाहन (192.18ः) टैक्सी/तीन पहिया वाहन (155.75ः) कार (110.04ः) स्कूटर/मोटर साइकल/मोपेड (80.99ः) एवं टेªक्टर/जीप/टेªलर (58.37ः) में भी वृद्धि हुई।
वाहनों की संख्या निरंतर वृद्धि के प्रभाव से नगर में वाहन दुर्घटनाओं में भी निरंतर वृद्धि हुई हैं जो सड़क-मार्ग पर वाहनों के बढ़ते दबाव का प्रतिफल है।
वर्ष 1998 में नगर में सबसे अधिक बाहन दुर्घटना स्कूटर/मोटर साइकिल (26.79ः) से हुई। इसके अलावा कार/टैक्सी/जीप से 24.14ः एवं ट्रक से 22.81ः दुर्घटना हुई, जबकि वर्ष 2008 में वाहन दुर्घटनाओं में सबसे अधिक दुर्घटनाएँ स्कूटर/मोटर साइकिल से (28.48ः) हुई। वाहन दुर्घटनाओं की वृद्धि दर में कार/टैक्सी/जीप की वृद्धि दर (90.11ः) सबसे अधिक रही। इसके अलावा स्कूटर/मोटर साइकिल से दुर्घटनाओं में 74.26ः, अन्य वाहनों (साइकिल रिक्सा आदि) से 88.57ः ट्रक से 23.26ः एवं बस से 6.89ः वृद्धि हुई।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पूर्व नगर में वाहन दुर्घटनाओं में औसत रूप से सबसे अधिक दुर्घटनाएँ ट्रक द्वारा (25.32ः) हुई, इसके अलावा स्कूटर/मोटर साइकिल (24.56ः) एवं कार/टेक्सी जीप (24.06ः) से भी अधिक दुर्घटनाएं हुई। किन्तु राज्य बनने के बाद नगर में सबसे अधिक दुर्घटनाएँ स्कूटर/मोटर सायकिल (51.02ः) से हुई। इसके अलावा कार/ टैक्सी/जीप (31.25ः) एवं ट्रक (26.08ः) से भी दुर्घटनाएँ अधिक हुई। इस प्रकार पिछले 10 वर्षों में बाहनों से दुर्घटनाओं में औसत वृद्धि दर 21.30ः की हुई।
4. सामाजिक अपराधों में वृद्धि:
नगर में जनसंख्या वृद्धि से जहां आवासीय ईकाई के रूप मेंग गंदी बस्तियों का प्रादुर्भाव हुआ वहीं आर्थिक क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धाओं में वृद्धि हुई, जिससे बरोजगारी की संख्या में वृद्धि हुई। बेराजगारी तथा आर्थिक स्पर्धाओं में वृद्धि से नगर में हत्या बलात्कार अपहरण, दुर्घटनाएं डकैती, लूट दंगे तथा अन्य अपराधिक घटनाओं में वृद्धि हुई है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पूर्व नगर के सामाजिक अपराधों में चोरी (26.61ः) एवं अन्य अपराधों (65.46ः) की प्रमुखता थी, किन्तु राज्य बनने के बाद नगर के विकास के साथ सामाजिक अपराधों के प्रतिरूपों में परिवर्तन हुए। राज्य बनने के बाद नगर में चोरी को छोड़कर सभी सामाजिक अपराधों में सबसे अधिक वृद्धि डकैती/लूट (73.33ः) में हुई। इसके अलावा अपहरण (36.36ः) दंगें (24.66ः), हत्या/हत्या के प्रयास (24.44ः), बलात्कार (22.73ः) तथा अन्य अपराधों में भी (21.01ः) वृद्धि हुई। चोरी की घटना का स्वरूप डकैती में परिवर्तित होने के कारण इसमें वृद्धि दर कम (9.34ः) रही।
इस प्रकार नगर में जनसंख्या के आकार एवं घनत्व में वृद्धि का प्रतिकूल प्रभाव नगर की सामाजिक व्यवस्था पर दृष्टव्य हुआ, जिससे नगर की सामाजिक आर्थिक सुरक्षा प्रभावित हुई।
स. समस्या का समाधान एवं सुझाव
नगर एक ओर जहाँ मनुष्य की आर्थिक-सामाजिक और वैज्ञानिक उन्नति के प्रतीत होते हैं वहीं दूसरी ओर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से अभिशापित केन्द्र भी कहे जाते हैं। नगर में जनसंख्या के तीव्र व्रद्धि होने से नगर का विकास अनियंत्रित ढंग से हुआ है, ऐसी स्थिति में नगरवासियों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चंूकि आप्रवासी भिन्न-भिन्न भाषा, धर्म एवं क्षेत्र के होते हैं तथा उनके मूल वातावरण का कुछ न कुछ अंश नए वातावरण में स्थापित करना चाहते हैं, जिसके कारण स्थानीय व्यक्तियों की तुलना में आप्रवासियों को अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परिणामतः आप्रवासियों को सामाजिक एवं आर्थिक सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। नगर में आप्रवास संबंधी समस्याओं के समाधान का विश्लेषण आप्रवासियों एवं आप्रवास क्षेत्र के संदर्भ में किया गया है।
1. आप्रवासियों की समस्या का समाधान
आप्रवासियों की मुख्य समस्या सुविधायुक्त आवास की कमी है, जिसके कारण आप्रवासियों, विशेषकर मजदूर वर्ग को गंदी बस्तियों में निवास करना पड़ता है। जो एक कमरे वाले अथवा असुविधायुक्त है। इन मकानों में आप्रवासियों को पेयजल, शौचालय एवं गंदे पानी की निकासी की प्रमुख समस्या है। इसके लिए ऐसे अपंजीकृत गंदी बस्तियों में जहाँ शौचालय अथवा गंदे पानी के निकासी की व्यवस्था न हो, उसे नगर उपांत क्षेत्र में उचित सुविधा प्रदान कर स्थानान्तरित किया जाए तथ गंदे पानी निकासी एवं सुलभ शौचालयों के नियमित साफ-सफाई की व्यवस्था शासन द्वारा किया जाए। इसके अलावा नगर में बहुमंजिल आवासीय परिसर विकसित किए जाए। इससे न केवल नगर के आवास की ईकाई में वृद्धि होगी, अपितु गंदी बस्तियों के विकास के पर भी नियंत्रण रखा जा सकेगा।
आप्रवासियों की सामाजिक समस्याएँ उनके जाति, भाषा, धर्म के क्षेत्रीय विभिन्नता का परिणाम है। जिसे आप्रवासी आपसी मधुर एवं सौहाद्रपूर्ण व्यवहार द्वारा सांमजस्य स्थापित कर स्वस्थ्य सामाजिक वातावरण निर्मित कर दूर कर सकते हैं। इसी प्रकार आप्रवासियों की आर्थिक समस्याएं उनके कार्यक्षेत्र में वर्गभेद के कारण निर्मित हुई है। जिसमें विशेषकर मजदूर वर्ग सम्मिलित है। चूंकि मजदूर वर्ग ठेकेदार के अधीनस्थ कार्य करते हैं, जिसमें शासन का कोई नियंत्रण नहीं होता, अतः शासन को ऐसे कार्यस्थल के निरीक्षण हेतु अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने चाहिए, जो क्षेत्र में जाकर मजदूर वर्ग की समस्याओं का समय-समय पर अवलोकन करें तथा प्रशासनिक हस्तक्षेप कर उस समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करें।
2. आप्रवासी क्षेत्र की समस्या का समाधान
बिलासपुर नगर में प्रमुख समस्या गंदी बस्तियों के विस्तार की है। नगर में गंदी बस्तियों के उन्मूलन एवं सुधार कार्यक्रम के तहत् अनाधिकृत गंदी बस्तियों के विकास पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है, जिसके लिये शासकीय भूमि का समुचित संरक्षण किया जाए। इसके लिए अधिकृत गृह मण्डल द्वारा नगर उपांत क्षेत्रों में आवासीय परिसर विकसित किए जाए। जिसमें सभी आय स्तर के लिए भूमि एवं मकान आसान किस्तों में सस्ते दर पर उपलब्ध हो सके। अस्तु, प्रदुषित गंदी बस्तियों को उपांत क्षेत्र की उचित भूमि में विस्थापित कर पर्यावरण सुधार कार्यक्रम के तहत गंदी बस्तियों को समस्यामुक्त किया जाए।
जनसंख्या आप्रवास से नगर के जनघनत्व में तीव्र वृद्धि ने यातायात व्यवस्था के समक्ष गंभीर चुनौती उत्पन्न की है। चंूकि बिलासपुर नगर का विकास अनियोजित रूप से हुआ है, जिससे नगर में यातायात की समस्या अधिक परिलक्षित हुई। नगर के प्रमुख मार्ग में यातायात प्रवाह को कम करने लिए सर्वप्रथम क्षेत्रीय परिधि मार्ग की संख्या में वृद्धि की जाए एवं वर्तमान सड़क की चैड़ाई को बढ़ाया जाए और इसे नगर के मुख्य यातायात मार्ग से पृथक किया जाए। इसी प्रकार बस्तियों को नियोजित सड़क मार्गों से सम्ब किया जाए एवं भारी वाहनों के परिवहन के लिए परिवहन कड़ी मार्ग विकसित किया जाए। नगर में राजमार्ग क्रमांक-26 पर बस्तियों के संवेदनशील एवं दुर्घटना ग्रस्त चैराहे (नेहरू नगर चैक, सिटी कोतवाली चैक, मुंगेली चैक इत्यादि) के मार्ग का चैड़ीकरण किया जाए तथा अवरोधक का निर्माण किया जाए जिससे वाहनों की गति को नियंत्रित किया जा सके। नगर को प्रदूषण रहित करने के लिए पुराने एवं भारी वाहनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
इसके अलावा नगर में बेरोजगारी की समस्या की समस्या भी चिंतनीय है। नगर में आप्रवासियों के आगमन से आप्रवासियों एवं स्थानीय व्यक्तियों में आर्थिक प्रतिस्पर्धा बढ़ने से बेरोजगारी की समस्या में वृद्धि हुई है। जिससे नगर में जनसंख्या का दबाव बढ़ गया है। इसके लिए नगर के उपांत क्षेत्रों में उपनगरीय क्षेत्र एवं रोजगान्मुखी उद्योग विकसित किए जाए, जिससे नगर की जनसंख्या उपनगरीय क्षेत्रों की ओर विस्थापित हो सके। सामाजिक अपराध को रोकने के लिए पुलिस व्यवस्था मजबूत की जाए एवं दोषी व्यक्ति को सार्वजनिक दंडित कर सामाजिक सुरक्षा एवं व्यवस्था के प्रति लोगों को पूर्णतया आश्वत् एवं सचेत किए जाए जिससे वे निर्भय होकर नगर में निवास कर सके।
संदर्भ सूची
1ण् ठवहनमए क्ण्सण् 1959 रू प्दजमतदंस डपहतंजपवदए पद व्ण्क्ण् क्नदबंद ंदक च्ण्डण् भ्ंनेंत ;म्केद्ध ष्ज्ीम ेजनकल व िच्वचनसंजपवद रू ।द पदअमदजवतल ंदक ।चचतंपेंसष् ब्ीपबंहव न्दपअमतेपजलए ब्ीपबंहवण्
2ण् ळतंतपंतए श्रण्ठण्ए 1966रू ळमवहतंचसल व िच्वचनसंजपवदए स्वदकवद ंदक छमूलवताण्
3ण्र् मसपदेालए ॅपससइनतए 1966रू । च्तवसवहनम जव च्वचनसंजपवद ळमवहतंचीलए च्तमदजपबम भ्ंससए छर्मू ममसंदकण्
4ण् सिंह, रवि प्रकाश, 2003: ग्रामीण जनसंख्या का महानगरोंन्मुख पलायनः कानपुर महानगर का प्रतीक अध्ययन‘‘, उत्तर भारत भूगोल पत्रिका, गोरखपुर, 401-39, पृ. 103।
5ण् चांदना, आर. सी. 1987: जनसंख्या भूगोल, कल्याणी पब्लिशर्स, नई दिल्ली।
Received on 15.03.2019 Modified on 16.04.2019
Accepted on 09.05.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):547-554.